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उत्तराखंड

देहरादून में सबसे पहले कौन लाया बासमती चावल, जानिए, बेहद रोचक है इसका इतिहास…..

देहरादून न सिर्फ अपनी खूबसूरती और सुंदर-सुंदर वादियों, घाटियों के लिए जानी जाती है,, बल्कि यह विश्व भर में स्वाद और मनमोहक खुशबू से भरपूर बासमती चावलों की पैदावार के लिए भी जानी जाती है।

देहरादून में पाए जाते बासमती चावल

शिक्षा नगरी और द्रोण नगरी देहरादून में ऐसे बासमती चावल पाए जाते हैं जो कि विश्व के किसी भी कोने में नहीं पाए जाते हैं और यही नहीं इनकी विश्व भर में इतनी धाक है कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने अमेरिका दौरे पर थे तो उन्होंने अमेरिका राष्ट्रपति जो बिडेन और उनकी पत्नी जिल बिडेन को देहरादून के इन्हीं बासमती चावलों को भेंट किया था।

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बासमती चावल अपने सुगंध और स्वाद के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध

उत्तराखंड के देहरादून में पाए जाने वाले बासमती चावल अपने सुगंध और स्वाद के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। इनकी महक इतनी मनमोहक और तेज होती है कि अगर यह किसी घर में पक रहे होंगे तो पूरे गांव में इसकी महक फैल जाती है साथ ही यह खाने में लजीज होती है। यही नहीं अगर यह किसी खेतों में भी लगाई जा रही है तो पूरा खेत बासमती धान की महक से भर जाता है। इसलिए विश्व भर में इन्हें पसंद किया जाता है और देहरादून में आते लोग सबसे पहले यहां के बासमती चावल लेजाने को तत्पर रहते हैं।

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यह चावल 19वीं सदी में अफगानिस्तान के कुनार प्रांत से भारत आया था

देहरादून में इन चावलों को लाने का श्रेय अंग्रेजों और अफ़गानियों को जाता है। देहरादून में यह चावल 19वीं सदी में अफगानिस्तान के कुनार प्रांत से भारत आया था। इसे वहां से भारत लाने वाले अफगानिस्तान के शासक दोस्त मोहम्मद खान बरकजई को जाता थे। दरअसल इसके पीछे कहानी यू है की साल 1839 से 1942 तक ब्रिटिश और अफ़गानों में भयंकर युद्ध चला था। इस युद्ध में अफगान के शासक दोस्त मोहम्मद खान की हार हुई थी और अंग्रेजों ने उसके पूरे परिवार का देश निकाला कर दिया। तब दोस्त मोहम्मद खान अपने निर्वासित जीवन बिताने के लिए परिवार समेत उत्तराखंड के मसूरी यानी कि देहरादून आए थे। धीरे-धीरे उनको यहां की भूमि पसंद तो आने लगी लेकिन बासमती पुलाव के शौकीन मोहम्मद खान को यहां के चावल रास नहीं आए। जिसके कारण उन्होंने अफगानिस्तान से बासमती धान के बीच मंगवाए और उन्हें देहरादून के इन पहाड़ियों में बो दिए। कहा जाता है कि इस धान को न केवल यहां की मिट्टी रास आई बल्कि जो पैदावार हुई वह अफगानिस्तान से भी उम्दा किस्म की और अच्छी गुणवत्ता वाली हुई। इसकी मनमोहन खुशबू इतनी तेज और यह खाने में इतनी लजीज थी कि हर कोई इसका दीवाना हो जाता था। और जिस घर में भी यह पकता था द्वारा इसके स्वाद के बिना रह नहीं पता था। इतनी तीव्र थी कि अगर एक बार या किसी घर में बन गया तो पूरे गांव में इसकी खुशबू फैल जाती थी। कारण है कि यह धीरे-धीरे चर्चा में आने लगी और इसकी चर्चा न सिर्फ उत्तराखंड, भारत बल्कि पूरे विश्व में होने लगी। और एक समय ऐसा भी आया कि और लोगों में इनकी डिमांड इतनी होने लगी की व्यापारी सीधा खेत से ही बासमती चावलों को ले जाने लगे।

 

 

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