उत्तराखंड सनातन संस्कृति, आस्था व भक्ति का अलौकिक संगम है। देवभूमि में कदम-कदम पर दिव्य और अलौकिक शक्तियों के देवालय से सजी इस देवभूमि उत्तराखण्ड में तीर्थ स्थलों की एक लंबी श्रृंखला है।
उत्तराखंड में देश दुनिया से लोग भगवान के दर्शन के लिए आते है। देवभूमि के ऐसे ही सभी अद्भूत दर्शनीय स्थलों में से एक आस्था का दिव्य स्थल भक्ति व मुक्ति प्रदान करने वाली माँ चन्द्रबदनी शक्तिपीठ का महत्व भी सबसे निराला है।
कहां स्थित है मां चंद्रबदनी
देवभूमि के टिहरी जिले में चन्द्रकूट पर्वत की लगभग 7500 फिट ऊंचाई वाली चोटी पर स्थित इस शक्ति स्थल को अनादिकाल से देवी ‘चन्द्रबदनी शक्तिपीठ’ मंदिर के नाम से पुकारा जाता है। यहां चारों तरफ बादल और पर्वत है।उत्तराखंड सिद्ध पीठ चंद्रबदनी
मंदिर में पहुंचकर सभी भक्तो को ऐसी अनुभूति होती है।
चंद्रबदनी मंदिर की पौराणिक मान्यता
पौराणिक मान्यता के अनुसार राजा दक्ष ने जब एक भव्य यज्ञ कराया था, तब उन्होंने अपनी पुत्री सती के पति परमेश्वर भोले शंकर को नहीं बुलाया,जिसके बाद मां सती ने यज्ञ की पवित्र अग्नि में अपने शरीर को अंतादाह कर दिया। जिसके बाद भगवान शंकर को यह पता चला तो माता सती के शरीर को लेकर वह पूरे ब्रह्मांड में इधर-उधर भटकने लगे और साथ ही तांडव करने लगे। जिससे देवता भी दर गए भोलेनाथ का ये रूप देखकर भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र माता सती के ऊपर चला दिया जिसके बाद से जहां-जहां माता सती के शरीर के भाग गिरे वे सभी शक्तिपीठों के रूप में स्थापित हुई। उन्हीं में से एक चंद्रबदनी माता का मंदिर है। जहां माता के बदन का भाग गिरा था, यहां पर भोले शंभू अर्थात शिव भगवान ने सती के लिए विलोप किया था तब माता सती ने चंद्र के रूप में उन्हें दर्शन देकर उनकी दुख भरी स्थिति को सही किया था इस कारण यहां का नाम माता के चंद्र वाले रूप तथा माता के बदन वाला भाग गिरने के कारण चंद्र बदनी नाम पड़ा।
चंद्रबदनी माता के मंदिर के बारे में कुछ रोचक तथ्य
माना जाता है कि चंद्रबदनी मंदिर की स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी मंदिर में कोई भी मूर्ति ना होकर एक श्री यंत्र हैं, जिसकी पूजा होती है,चंद्रबदनी मंदिर में माता सती का भजन बदन गिरा था। इस कारण एक शिलालेख पर चुन्नी तथा उसके ऊपर श्री यंत्र लगा हुआ है। जब भी मंदिर में पूजा की जाती है तो यहां पुजारी आंखों में पट्टी लगाकर माता सती की पूजा करते है। कहा जाता है की। अगर कोई उन्हें खुली आंखों से देख ले तो वहां अंधा हो जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार कोई मां का भक्त उनके मंदिर आया और उसने मां को देखने को जिद की,जैसे ही उसने मां को देखने की कोशिश की वहां अंधा हो गया। इसलिए मां की पूजा आंखों पर पट्टी बांधकर की जाती है
साथ ही था दूर दराज से भक्त मां के दर्शन के लिए आते है।माना जाता है की जो भी भक्त सच्चे मन से मां के दर्शन के लिए आता है, उन सभी भक्तो को मन की मुराद पूरी होती है।
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