उत्तराखंड के इस पावन स्थान पर मां पार्वती ने सात देवदार के वृक्षों का रूप किया था धारण https://www.facebook.com/divaydrishti123
उत्तराखंड की पावन भूमि पर कई मंदिर है।
उत्तराखंड को भोलेनाथ की तपस्थली भी कहा गया है.यहा हर व्यक्ति के मन में भोले का वास है.वही आज हम आपको बताएगें ऐसे पावन स्थल के बारे में जहाॅं बाबा भोलेनाथ विराजमन हैं.जहां भोलेबाबा के होने का एहसास बना हुआ है। https://www.instagram.com/divaydrishti23/
हम बात कर रहै तड़केश्वर महादेव की यहां दूर दराज से भक्त बाबा शिव के दर्शन के लिए आते है.ताड़केश्वर महादेव उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के जहरीखाल विकासखंड में है.यहाॅं देवदार ,बुरांस और काफल के वृक्षों के बीच में बाबा का वास है।
यहां शिवरात्री पर होती है विशेष पूजा अर्चना
तड़केश्वर मंदिर पेड़ों से घिरा हुआ है, जो दिखने में काफी सुंदर लगता है ,यहा चारों तरफ घंटिया बन्दी हुई है ,जो सकारात्माक ऊजा फैलाती है, यहां पानी के छोटे छोटे सुंदर झरने बेहते है ,महादेव के इस मंदिर में शिवरात्री के दिन विशेष पूजा अर्चना के साथ मेले का आयोजन किया जाता है।
मां लक्ष्मी का भव्य कुंड
आप को बता दे की मंदिर में एक कुंड भी है पौराणीक कथाओं के अनुसार ,यह कुंड खुद मां लक्ष्मी ने खोदा था। इस कुंड के पवित्र जल का उपयोग शिवलिंग के जलाभिषेक के लिए किया जाता है। जानकारी के अनुसार यहां पर सरसों का तेल लगा कर आना और शाल के पत्तों का लाना वर्जित माना गया है।
पौराणिक कथा के अनुसार
पौराणिक कथाओं के अनुसार, ताड़कासुर नामक राक्षस ने भगवान शिव से अमरता का वरदान प्राप्त करने के लिए इस स्थान पर तपस्या की थी। शिवजी एक मात्र ऐसे भगवान है जो जल चढ़ाने पर ही मनोकामना को पूरी कर देते है,यही कारण है की बाबा का नाम भोलेनाथ रखा गया, शिवजी से वरदान पाकर ताड़कासुर अत्याचारी हो गया। परेशान होकर देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थन की और ताड़कासुर का अंत करने के लिए कहा। जिसके बाद भगवान शिव के पुत्र कार्तिके ने ताड़कासुर का वध किया जिसके बाद ताड़कासुर को अपनी भूल का अहसास हुआ और भगवान शिव से माफी मांगने लगा ,भोलेनाथ ने राक्षक को माफ किया और वरदान दिया कि कलयुग मे लोग इस स्थान को ताड़केश्वर के नाम से जानेगें।
दुसरी कथा के अनुसार ताड़कासुर का वध करने के बाद शिव शंकर इस स्थान पर विश्राम कर रहै थे,जिस दौरान भोलेनाथ पर सुर्य की किरणें पड़ रही थी ,जिसके बाद स्वयं माता पार्वती सात देवदार के वृक्षों का रूप धारण कर वहां प्रकट हुईं। इसलिए आज भी मंदिर के पास स्थित 7 देवदार के वृक्षों को देवी पार्वती का स्वरूप मानकर पूजा जाता
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